उम्मीदें

कुछ पल तो ठैहर जाओ ना या फिर लौट के आओ ना...!!!! आज काफी दिन हो गए मुझे यहाँ रहते हुए। बहुत लोगो को आते देखा, यहाँ से जाते देखा । शुरूवात में ये बच्चे यहाँ आने में घबराते हैं, फिर ये इन्हीं चार दीवारों में कैद हो के रह जाते हैं। फिर एक दिन वो आई| आँखो में तेज़ चमक और हल्की सी मुस्कुराहट के साथ मुझसे बोली कमरा न• 9 कीधर पड़ेगा, मैंने उन्हें वो रास्ता बताया और फिर वो चल दी।
अगले दिन सुबह मेरी मुलाकात उनसे फिर हुई मैंने उनसे उनका नाम पूछा तो जवाब आया अनीता। अनीता जी उस रैशन दीए की तरह थी जो खुद जलकर दूसरो को रैशनी देती है। इतने दिनों में मैंने उन्हें कभी उदास नहीं देखा लेकिन उनका अपना गीले तकीए को धूप में डालना दुख बयां कर जाता था। हर रोज़ वो सबके साथ बैठती और अपने परिवार के किस्से सुनाती और रोज़ शाम ठीक 5 बजे किसी को फोन करने चली जाती और फिर नम आँखो के साथ वापस आती। काफी बार जानने की कोशिश की आखीर कैन सी बात उन्हें परेशान करती हैं, लेकिन कभी हिम्मत नहीं हुई की उनसे पूछ पाऊ।
एक दिन| पता चला की उनकी तबयत खराब है मै हाल लेने उनके कमरे में गया तो वहाँ से पता लगा की वो किसी को फोन करने गई है। मै वहीं उनसे मिलने चला गया वहां जा के पता चला की वो रोज़ शाम ठीक 5 बजे अपने बेटे को फोन करने आती थी, और रोज़ की तरह उनका बेटा ये बोल कर फोन काट देता की वो busy है। और रोज़ की तरह वो अपने बेटे के फोन का इंतज़ार करती जो की आज तक नहीं आया । बेटे के फोन के इंतज़ार में वो चली गई बहुत दूर। ये पहली बार नहीं है , ये पहली आनीता जी नहीं थी।
आज भी याद है मुझे, आनीता जी ने मुझे यहाँ आते ही बोला था कि वो यहाँ ज्यादा दिन के लिए नहीं आई , मेरा बेटा मुझे जल्द| ही यहाँ से से जएगा। जाने क्यों हम उम्मीदें पाल लेते है किसी से। उम्मीदों से केवल दर्द होता हैं।
ना जाने क्यों छोड़ जाते है लोग अपने माँ बाप को यहाँ। मैं खुद से ये सवाल पूछ ही रहा था कि इतने में पीछे से आवाज़ आई... भाई साहब कमरा न• 9 किधर पड़ेगा, वो क्या है ना मै बस कुछ दिन के लिए ही आया हूं। मैंने मुस्कूरा के जवाब| दिया की भाई साहब यहाँ लोग कुछ दिन के लिए ही आते हैं और हमेशा के लिए यहीं के हो कर रह जाते है ।

Innocence

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